होसले है बुलंद
चारो तरफ था अनदेरा , बस एक चमक का सहारा था
मिट गयी थी मेरी चमक, मिट गए थे इरादे
सोचो वो क्या नज़ारा था,
सांसे थी चल रही पर , जीने का न इरादा था
बस कुछ दो पल था मेरा , बाकि सब झूठा सहारा था
सोचो वो क्या नज़ारा था ,
मिट गयी थी रहे मेरी , पीछे न हटने का इरादा था ,
रस्ते थे कठिन पर रुकने का न इरादा था ,
सोचो वो क्या नज़ारा था ,
दिल मैं था एक सपना , और उसे सच करने का इरादा था
मंजिल नहीं दूर अब , पूरा करना है सपना अपना
सोचो वो क्या नज़ारा है
नितिन sharma .......................